लुप्त हो रही लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्द्धन हेतु कार्यरत ‘लोक संस्कृति शोध संस्थान’ सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत सम्यक रूप से पंजीकृत एक स्वयंसेवी संस्था है। संस्थान द्वारा अपनी स्थापना से लेकर अब तक पारम्परिक लोक गीतों को हस्तांतरित करने के उद्देश्य से न केवल प्रस्तुतिपरक कार्यशालायें आयोजित की गयी हैं, अपितु अनेक आयोजनों से लोक विमर्श की पृष्ठभूमि भी तैयार की गयी। विषयाधारित व्याख्यान व भूली-बिसरी यादें के अन्तर्गत विद्वानों के व्याख्यान की रिकार्डिंग, कवि दरबार, प्रतिमाह लोक चौपाल, प्रतिमाह दादी-नानी की कहानी के साथ ही अवधी, ब्रज, बुन्देली, भोजपुरी, कौरवी, कुमाऊंनी, गढ़वाली आदि लोक भाषा-संस्कृति के संरक्षण-संवर्द्धन के सतत प्रयास निरन्तर जारी हैं। संस्था द्वारा शोधपरक पुस्तकों के प्रकाशन के साथ ही लोक धुनों को रिकार्ड कर उन्हें संरक्षित करने का अभियान चलाया जा रहा है। प्रति वर्ष विभिन्न क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए विशिष्ट जनों को सम्मानित भी किया जाता है।
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