संस्था के बारे में
लुप्त हो रही लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्द्धन हेतु कार्यरत ‘लोक संस्कृति शोध संस्थान’ सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत सम्यक रूप से पंजीकृत एक स्वयंसेवी संस्था है। संस्थान द्वारा अपनी स्थापना से लेकर अब तक पारम्परिक लोक गीतों को हस्तांतरित करने के उद्देश्य से न केवल प्रस्तुतिपरक कार्यशालायें आयोजित की गयी हैं, अपितु अनेक आयोजनों से लोक विमर्श की पृष्ठभूमि भी तैयार की गयी। विषयाधारित व्याख्यान व भूली-बिसरी यादें के अन्तर्गत विद्वानों के व्याख्यान की रिकार्डिंग, कवि दरबार, प्रतिमाह लोक चौपाल, प्रतिमाह दादी-नानी की कहानी के साथ ही अवधी, ब्रज, बुन्देली, भोजपुरी, कौरवी, कुमाऊंनी, गढ़वाली आदि लोक भाषा-संस्कृति के संरक्षण-संवर्द्धन के सतत प्रयास निरन्तर जारी हैं। संस्था द्वारा शोधपरक पुस्तकों के प्रकाशन के साथ ही लोक धुनों को रिकार्ड कर उन्हें संरक्षित करने का अभियान चलाया जा रहा है। प्रति वर्ष विभिन्न क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए विशिष्ट जनों को सम्मानित भी किया जाता है।
संस्था के उद्देश्य
लोक संस्कृति शोध संस्थान के उद्देश्य निम्नवत हैं
(1) लुप्त हो रही लोक संस्कृति का संरक्षण व संवर्द्धन करना।
(2) लोक वाद्य, संस्कार गीत, ऋतु गीत, मेला गीत, खेती किसानी के गीत, जाति गीत व नृत्य, नौटंकी, बिरहा, आल्हा आदि पारम्परिक व प्रदर्श्यकारी कलाओं के अभिलेखीकरण का कार्य, प्रदर्शन प्रबन्ध तथा लोक संस्कृतियों पर शोध कार्य करना।
(3) अवधी, भोजपुरी, ब्रज, बुन्देली, कौरवी, कूमायूँनी, गढ़वाली, आदिवासी आदि विविध लोक भाषाओं व उनकी पारम्परिक सांस्कृतिक विशिष्टताओं की खोज करना तथा उनके संरक्षण का प्रयास करना।
(4) शोध कार्य हेतु छात्रवृत्ति का प्रबन्ध करना, शोध पत्रों का प्रकाशन करना।
(5) लोक संस्कृति से जुड़े साहित्य का प्रचार-प्रसार, पुस्तकों-पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन करना, पुस्तकालयों की स्थापना तथा उसका संचालन करना।
(6) जनमानस में रची बसी लोक धरोहरों को संरक्षित करना। लोक कलाकारों को मंच दिलाना, सम्मानित करना तथा उनके सर्वांगीण उत्थान का प्रयास करना।
(7) समाज के स्वस्थ मनोरंजन के साथ ही लोक चेतना की दृष्टि से पारम्परिक कला व संस्कृति के आलोक में वृत्त चित्र, लघु फिल्म, फिल्म व धारावाहिकों आदि का निर्माण करना।
(8) लोक संस्कृति से जुड़े विषयों के आधार पर नौटंकी/नाट्य समारोह का आयोजन करना।
(9) लोक संस्कृति संरक्षण के निमित्त विविध कार्यशालाओं का आयोजन करना।
(10) लोक संगीत, लोक कलाओं के शिक्षण/प्रशिक्षण हेतु विद्यालय/महाविद्यालय आदि शिक्षण केन्द्रों की स्थापना व उनका संचालन करना।
(11) भारतीय पर्व व त्यौहारों के उल्लास में वृद्धि करना, कुरीतियों के उन्मूलन का प्रयास करना।
(12) पारम्परिकता पर आधारित चैती, कजरी, फाग आदि पर आधारित समारोहों का आयोजन करना।
(13) कठपुतली, जादू आदि कलाओं के संरक्षण का प्रयास करना, प्रदर्शन समारोहों का आयोजन तथा उससे जुड़े कलाकारों को सम्मानित करना।
(14) नई प्रतिभाओं की खोज हेतु प्रतियोगिताओं का आयोजन करना तथा उन्हें मंच दिलाना।
(15) पारम्परिक लोक कलाओं जैसे भूअलंकरण (रंगोली, चौक पूरना आदि), भित्ति चित्रांकन, घरेलू उपयोग की वस्तुओं का निर्माण व अलंकरण आदि कौशलों का विकास करना।
(16) लोक समृद्धि व स्वावलम्बन की दृष्टि से बुनाई, सिलाई, कढाई जैसी शिल्प कलाओं का प्रशिक्षण, प्रदर्शन व विपणन आदि का कार्य करना।
(17) लोकोपयोगी पारम्परिक वस्तुओं के उत्पादन व विपणन आदि का प्रबन्ध कर लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने का प्रयास कर स्वावलम्बी बनाना तथा खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड, खादी ग्रामोद्योग आयोग से समन्वय स्थापित करते हुए इकाईयों की स्थापना व संचालन करना।
(18) पारम्परिक अवसरों पर लोक कला मेला, प्रदर्शनी आदि समारोहों का आयोजन करना।
(19) कला प्रदर्शन हेतु प्रेक्षागृहों का निर्माण व उनका संचालन करना।
(20) लोक कलाकारों की कलाओं की आडियों, वीडियो रिकार्डिंग कराना। रिकार्डिंग स्टूडियो की स्थापना एवं संचालन करना।
(21) संस्कृति विभाग-भारत सरकार, भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद, दूरदर्शन, आकाशवाणी, केन्द्रीय संगीत नाटक अकादेमी-नई दिल्ली, उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, अन्य क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र, राज्य के संस्कृति विभाग व उससे जुड़ी संस्थाओं से समन्वय स्थापित कर लोक संस्कृति के उत्थान हेतु कार्य करना।